ऑटो चलाते आदमी ने मशरूम की खेती कर के हर महीने 3 लाख का बिजनेस कर रहा है

यूपी के भदोही जनपद में रहने वाले रामचंद्र दूबे गरीबी में पले बढ़े। पिता जी मुंबई में एक मिल वर्कर थे। परिवार में कोई और कमाने वाला नहीं था। पैसों की तंगी के चलते 12वीं के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी और वे भी मुंबई चले गए। पिताजी के साथ मिल में काम करने लगे। इसके बाद कई साल उन्होंने ऑटो चलाए, प्राइवेट कंपनियों में काम किया, मजदूरी की।
साल 2017 में वे मुंबई से गांव लौट आए। यहां उन्होंने मशरूम की खेती शुरू की। प्रोडक्शन तो हुआ, लेकिन बिक्री नहीं हो पाई। कमाई की जगह उन्हें घाटा ही सहना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार मानने की बजाय कोशिश जारी रखी। आज वे सफल किसान हैं। हर महीने 2 से 3 लाख का बिजनेस कर रहे हैं। एक दर्जन से ज्यादा लोगों को उन्होंने रोजगार भी दिया है।
62 साल के रामचंद्र बताते हैं कि 1980 में मैं 12वीं के बाद मुंबई चला गया। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए पिताजी जिस मिल में काम करते थे, वहीं मैं भी काम करने लगा, लेकिन यहां ज्यादा दिन मेरा मन नहीं लगा। दो साल बाद मैंने ऑटो चलाना शुरू कर दिया। ज्यादा से ज्यादा आमदनी हो, इसलिए घंटों ऑटो चलाता था। कई बार तो ऑटो पर ही रात भी गुजारनी पड़ती थी।
एक के बाद एक काम और नौकरी बदलते गए
5-6 साल तक उन्होंने ऑटो चलाने का काम किया। इसके बाद वे मुंबई में एक कोऑपरेटिव सोसायटी से जुड़ गए। कुछ सालों तक उन्होंने यहां काम किया। बाद में कई लोग धांधली करने लगे। इससे आहत होकर रामचंद्र सोसाइटी से अलग हो गए। इसके बाद उन्होंने कुछ साल प्राइवेट कंपनियों में काम किया। बाद में एलआईसी से भी जुड़ गए। यानी कुल मिलाकर जैसे-तैसे रोजी-रोटी की व्यवस्था करते रहे।
साल 2001 की बात है। रामचंद्र गांव आए थे। एक दिन उन्हें अखबार में एक विज्ञापन देखने को मिला। जिसमें लिखा था बिना जमीन की खेती से लाखों रुपए कमाएं। पहले तो उन्हें इस बात पर भरोसा नहीं हुआ। जब जमीन वाले खेती से कमाई नहीं कर पा रहे हैं तो बिना जमीन वाले कैसे कमाएंगे। बाद में उन्होंने उस विज्ञापन पर दिए गए नंबर पर फोन किया। तब उन्हें मुंबई बुलाया गया।
ट्रेनिंग के लिए 5 हजार रुपए भी नहीं थे
रामचंद्र कहते हैं कि गांव से वापस मुंबई लौटने के बाद मैं विज्ञापन वाले पते पर गया। वहां जाने के बाद मुझे मशरूम के बारे में जानकारी मिली। मेरे लिए यह बिल्कुल नया शब्द था। पहली बार मैंने इसका नाम सुना था। 100 रुपए रजिस्ट्रेशन फीस देकर मैंने इसके बारे में जानकारी ली, लेकिन प्रैक्टिकल ट्रेंनिग के लिए 5 हजार रुपए मुझसे डिमांड की गई। तब मेरे पास इतने पैसे नहीं थे। कोशिश करने के बाद भी मैं 5 हजार रुपए का इंतजाम नहीं कर सका। मजबूरन निराश होकर मुझे लौटना पड़ा। इसके बाद मैं अपने काम में फिर से लग गया, लेकिन मुझे मशरूम की ट्रेनिंग नहीं ले पाने का मलाल रह गया।
रामचंद्र बताते हैं कि मैं मुंबई से अपने गांव आता रहता था। कुछ खेती बाड़ी थी, मेरी कुछ जमीन जौनपुर जिले में भी थी। इसको लेकर विवाद था। इसी सिलसिले में मेरा अक्सर जौनपुर जाना भी होता रहता था। 2017 में भी मैं जौनपुर आया था। तब गांव के लोगों से यू हीं खेती को लेकर चर्चा हो रही थी। मेरे खेत बेकार पड़े थे, उनमें लंबी-लंबी घास लगी थी। यह देखकर मुझे तकलीफ हुई और मैंने खेत की जुताई-निराई करवा दी।
यह देखकर कुछ लोगों ने तंज भी कसा कि खेती करनी ही नहीं है तो पैसे क्यों खर्च किया। मैं भी समझ नहीं पा रहा था कि अब क्या किया जाए। तभी एक परिचित ने मुझे कृषि विज्ञान केंद्र जाने की सलाह दी। वहां पहली बार गया तो अधिकारियों से नहीं मिल पाया। दूसरी बार जाने पर मुझे मशरूम की ट्रेनिंग के बारे में पता चला।
चूंकि 2001 में पैसे की कमी के चलते मशरूम की ट्रेनिंग नहीं ले पाने का मलाल रह गया था। इसलिए यहां जब फ्री में ट्रेनिंग का ऑफर मिला तो तत्काल रजिस्ट्रेशन करा लिया। 5 दिन की ट्रेंनिग के बाद मुझे मशरूम फार्मिंग की अच्छी-खासी जानकारी हो गई और मेरा रुझान भी इस तरफ बढ़ गया। इसलिए मैंने तय किया कि अब वापस मुंबई नहीं जाऊंगा।
ट्रेनिंग के बाद भी मुश्किलें कम नहीं हो रही थीं
रामचंद्र कहते हैं कि ट्रेंनिग तो ले ली, लेकिन दिक्कत ये थी कि बीज कहां से लाया जाए, कोई किसान इसके लिए तैयार भी नहीं हो रहा था। जो किसान इसके बारे में जानते थे, उनका कहना था कि इसका मार्केट नहीं है, प्रोडक्शन कर भी लें तो बेचेंगे कहां।
वे कहते हैं कि तब मुझे मुंबई वाले ट्रेनर की बात याद आई। उसने कहा था कि आप देश के किसी भी कोने में मशरूम उगाओ, मैं खरीद लूंगा। इसलिए मैंने किसानों से कहा कि आप खेती करो, मार्केटिंग की जिम्मेदारी मुझ पर छोड़ दो।
800 रुपए से की मशरूम की खेती की शुरुआत
रामचंद्र ने एक स्थानीय किसान की मदद से 2017 में 800 रुपए की लागत के साथ मशरूम की खेती की शुरुआत की। दो महीने बाद उपज भी निकलने लगी। चूंकि तब ज्यादातर लोग इससे परिचित नहीं थे तो उन्होंने मुफ्त में ही सबको बांटना शुरू कर दिया। इससे लोगों में थोड़ी जागरूकता बढ़ी।
उपज और बढ़ी तो उन्होंने लोकल मार्केट में दुकानों पर मशरूम रखना शुरू कर दिया। इससे धीरे-धीरे ही सही, उनके उपज की खपत होने लगी। हर दिन वे 20 से 22 किलो मशरूम की मार्केटिंग करने लगे। इससे उनकी ठीक-ठाक कमाई हो जाती थी।
2018 के अंत तक उनका प्रोडक्शन ज्यादा होने लगा। उनके साथ दूसरे किसान भी मशरूम उगाने लगे थे। रामचंद्र के सामने अब दिक्कत ये थी कि इतनी बड़ी उपज को खपाए कहां? यहां तो छोटा ही मार्केट है। मशरूम बिकेंगे नहीं तो खराब हो जाएंगे। तब उन्हें फिर से मुंबई वाले ट्रेनर की याद आई और वे मुंबई रवाना हो गए। उन्होंने ट्रेनर से कहा कि हम मशरूम उगा रहे हैं, आपने खरीदने की बात कही थी तो अब हमारी उपज लीजिए, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
इसके बाद निराश होकर रामचंद्र गांव आ गए। अब उनके सामने दोहरी मुसीबत थी। एक तरफ मार्केटिंग नहीं कर पा रहे थे तो दूसरी तरफ बाकी के किसान उनकी तरफ उम्मीदें लगाए हुए देख रहे थे। इसलिए बैक गियर लेना भी मुमकिन नहीं था।
प्रोडक्शन बढ़ा और बिक्री नहीं हो पाई तो करने लगे प्रोसेसिंग
इसके बाद रामचंद्र ने मशरूम की प्रोसेसिंग करना शुरू किया। वे मशरूम से पाउडर, अचार, पापड़ जैसे प्रोडक्ट बनाने लगे। इससे उनके प्रोडक्ट का वैल्यू एडिशन भी हो गया और मशरूम खराब होने से भी बच गए। फिलहाल रामचंद्र भदोही, जौनपुर और उसके आसपास के इलाकों में अपने प्रोडक्ट बेचते हैं। कई शहरों में स्टॉल लगाकर भी वे मार्केटिंग करते हैं। एक दर्जन से ज्यादा महिलाओं को उन्होंने रोजगार दिया है। जबकि कई किसान उनसे जुड़कर बढ़िया कमाई कर रहे हैं।
सालाना 8 से 10 लाख रुपए की आसानी से कर सकते हैं कमाई
मशरूम की खेती से कम लागत में और कम वक्त में बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है। अगर आपके पास पहले से कोई पक्के निर्माण का घर है तो ठीक, नहीं तो आप भी झोपड़ी मॉडल अपना सकते हैं। इसमें लागत कम आएगी। इसके बाद खाद तैयार करने और मशरूम के बीज का खर्च आएगा। फिर मेंटेनेंस में भी कुछ पैसे लगेंगे। कुल मिलाकर 3 से 4 लाख रुपए में छोटे लेवल पर मशरूम की खेती की शुरुआत की जा सकती है। एक साल में तीन बार उपज का लाभ लिया जा सकता है। यानी 8 से 10 लाख रुपए की कमाई आसानी से की जा सकती है।