“शख्स कॉलेज नहीं जा सका, फिर ऐसे 35 प्रकार के Farming Tools बनाये की विदेशों से डिमांड आने लगी”

“शख्स कॉलेज नहीं जा सका, फिर ऐसे 35 प्रकार के Farming Tools बनाये की विदेशों से डिमांड आने लगी”

भारत के युवाओं में प्रतिभा का भण्डार है। इसके लिए किसी पढाई-लिखाई या डिग्री की जरुरत नहीं है। गुजरात के रहने वाले हिरेन पांचाल की भी ऐसी ही कहानी है। वे गुजरात के राजपीपला शहर के पास धरमपुर में रहकर खेती और बागवानी से जुड़े कई प्रकार के औज़ार बना रहे हैं।

हिरेन ने खेती और बागवानी को और इजी बनाने के लिए करीब 35 प्रकार के टूल्स बनाए हैं। मात्र तीन साल में उनके द्वारा तैयार किये गए टूल्स इसने काम के है की, अपने देश के अलावा विदेश से भी उनके टूल्सकी डिमांड होने लगी है।

हमेशा खेती और बागवानी  का काम लोगो को झंझट सा प्रतीत होता है। इसी कारण देश के युवा इस काम को नज़रअंदाज़ करते है। आज के मॉर्डन ज़माने में बाजार में कई हाईटेक उपकरण मिल रहे है, लेकिन यह Farming Tools बहुत महंगे पड़ते है।

ऐसे आधुनिक उपकरण आदिवासी किसानों को मुहैया नहीं हो पाते हैं। यह सब देखकर हिरेन ने यह सभी आविष्कार किये। यह इनोवेशन वाले टूल्स लोगो को बहुत पसंद आये। अब इसकी ख्याति फैलने से उन्हें अमेरिका और जर्मनी जैसे देशों से भी ऑर्डर्स मिलने लगे हैं।

हिरेन जीवन में कभी स्कूल-कॉलेज नहीं गए

हिरेन ने देखा की छोटे किसान बड़ी मशीन नहीं खरीद सकते है और वैसे भी बड़ी मशीन उनके छोटे खेत के लिए असरदार नहीं होती हैं। ऐसे में, सस्ते और हल्के उपकरण उनके लिए फायदेमंद हो सकते हैं। हिरेन जीवन में कभी स्कूल-कॉलेज नहीं गए हैं। वह होम स्कूलिंग को सही मानते हैं। जब वे 16 साल के थे, तब पुणे के विज्ञान आश्रम गए थे। वहां उन्हें कई प्रकार की ट्रैनिंग, प्रैक्टिकल और विज्ञान की उपयोगी चीजों का ज्ञान हुआ।

उन्होंने एक स्थानीय पत्रकार को बताया की विज्ञान आश्रम से आने के बाद, उनके जीवन में कई चेंज आया। उन्हें इस बात का अहसास हुआ की बड़ा काम करने से अच्छा है कि वो काम करो, जिससे जरूरतमंद लोगों को फायदा हो। पुणे से काफी चीज़े सीखकर उन्होंने ‘गुजरात विद्यापीठ’ के साथ करीब 5 साल काम किया।

उस विद्यापीठ में बच्चों को खेती, बागवानी, सिलाई और हस्तकला जैसे कई काम सिखाए जाते हैं। वहां वह अल्टरनेटिव ऊर्जा के एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। फिर उन्हें वहां बच्चों को भी इस तरह की शिक्षा देने का काम करने का अवसर प्राप्त हुआ।

एक NGO के साथ जुड़कर किसानो के हित में काम किया

विद्यापीठ की तरफ से, वह एक साल के स्टूडेंट एक्सचेंज प्रोग्राम में जर्मनी भी गए थे। जर्मनी से वापस आकर उन्होंने गांव में ही अपना काम करने पर विचार किया। वे ‘प्रयास’ नाम की एक NGO के साथ जुड़ गए और काम करने लगे।

NGO के साथ काम करते हुए उन्होंने गुजरात के नर्मदा जिले के 72 गावों में प्राकृतिक खेती के प्रचार-प्रसार पर बहुत मेहनत की। जब वे नर्मदा जिले में काम कर रह थे, तब उन्होंने देखा कि यहां किसानों के पास छोटे-छोटे खेत थे। यह एक पर्वतीय क्षेत्र है, ऐसे में वहां लोगों के पास छोटी जमीन होती है, वहां पानी की समस्या भी थी। हिरेन भी प्रयास की जमीन पर खेती करते थे, तो उन्हें स्वयं भी कई दिक्कतें हुई।

विज्ञान आश्रम की प्रैक्टिल वाली शिक्षा काम आई

इनकी खेती में परेशानी को दूर करने के लिए उन्होंने विज्ञान आश्रम की अपनी शिक्षा का सहारा किया और अपने लिए टूल्स बनाना खुद ही चालू किया। उबड़ खाबड़ जमीन को समतल बनाने से लेकर घास की कटाई जैसे काम करने के लिए उन्होंने इन टूल्स को बनाना शुरू किया। फिर आस-पास के कई किसान उनसे वह टूल्स मांगते।

महिला किसान के लिए यह टूल्स काफी काम के थे। यही सब देखते हुए उन्हें किसानी के लिए यह उपयोगी टूल्स बनाने का आईडिया आया। करीब 3 साल पहले उन्होंने बहुत ही कम लागत लगाकर और स्थानीय कारीगरों की मदद से धरमपुर (गुजरात) में एक स्टार्टअप शुरु किया। उन्होंने अपने इस स्टार्टअप को ‘मिट्टीधन’ नाम दिया।

मिट्टीधन Startup इसका मकसद टूल्स को ज्यादा लोगों तक पहुंचना था। धरमपुर जैसे आदिवासी क्षेत्र में काम करने के लिए, उन्हें एक स्थानीय मित्र ने अपनी जगह उपयोग करने के लिए दे दी। बीते 3 सालों में, उन्हें 9000 के करीब टूल्स बनाने के ऑर्डर्स मिले हैं।

उनके पास खेतों में निराई के लिए 4,6 और 7.5 इंच डी-वीडर, नर्सरी, बगीचे के लिए कुदाल, निराई के लिए पुश एंड पुल वीडर, बेकार घास काटने वाला स्लेशर, वीड Two In One वीडर और फावड़ा वीडर के साथ-साथ रैक, नारियल का छिलका निकालने के लिए मशीन, छोटे खरपतवार हटाने के लिए रैक वीडर, जमीन से मलबा हटाने के लिए हल, मॉर्डन कुल्हाड़ी समेत टोटल 35 टूल्स हैं। इस टूल्स की कीमत भी बहुत कम राखी गई है। कोई भी औज़ार 200 रु से अधिक का नहीं है।

उन्होंने बच्चों में बागवानी की रुचि को बढ़ाने के लिए पांच टूल्स का एक सेट तैयार किया है। इसके भी वह 550 से ज्यादा ऑर्डर्स मिल गए हैं। अब उन्हें सोशल मीडिया की मदत से विदेशों से भी ऑर्डर्स मिलते हैं।

[ डि‍सक्‍लेमर: यह न्‍यूज वेबसाइट से म‍िली जानकार‍ियों के आधार पर बनाई गई है. Air News अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है. ]

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