ऑटो चला कर पिता के कैंसर की इलाज़ करवा रही उनकी दिव्यांग बेटी

छोरियां छोरों से कम बिलकुल भी नहीं होतीं। अगर आप छोरियों को कम आंकते हैं तो अहमदाबाद की 35 वर्षीय अंकिता शाह की कहानी जान लीजिए। अंकिता दिव्यांग हैं। बचपन में पोलियो की वजह से उनका दायां पैर काटना पड़ा था। इसके बावजूद वह पिछले 6 महीनों से अपने कैंसर पीड़ित पिता के इलाज के लिए ऑटो रिक्शा चला रही हैं। वो अहमदाबाद की पहली दिव्यांग ऑटो रिक्शावाली हैं!
छोड़ी दी कॉल सेंटर की नौकरी
इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएट अंकिता पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। वो साल 2012 में अहमादाबाद आईं और एक कॉल सेंटर में नौकरी करने लगीं। लेकिन कैंसर पीड़ित पिता के लिए उन्होंने इस नौकरी को छोड़कर ऑटो रिक्शा चलाने का फैसला किया।
क्यों चुना ऑटो रिक्शा चलाना?
अंकिता बताती हैं, ’12 घंटे की शिफ्ट में मुझे मुश्किल से 12,000 रुपये मिलते थे। जब पता चला कि पिताजी को कैंसर है तो मुझे उनके इलाज के लिए बार-बार अहमदाबाद से सूरत जाना पड़ता और छुट्टियां मिलने में दिक्कत होती। तनख्वाह भी ज्यादा नहीं थी। इसलिए मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया।
जब नहीं मिली दूसरी नौकरी
वो आगे कहती हैं, ‘वह दौर आसान नहीं था। घर का गुजारा चलाना मुश्किल हो रहा था। मुझे पिताजी के इलाज में मदद ना कर पाने का मलाल था। इसलिए मैंने अपने दम पर कुछ करने की ठानी। कई कंपनियों में इंटरव्यू दिए। लेकिन कंपनीवालों के लिए मेरा दिव्यांग होना परेशानी का सबब था। ऐसे में मैंने ऑटो चलाना शुरू किया।’
दोस्त से सीखा ऑटो चलाना
अंकिता ने बताया, ‘मैंने ऑटोरिक्शा चलाना अपने दोस्त लालजी बारोट से सीखा, वो भी दिव्यांग है और ऑटोरिक्शा चलाता है। उसने ना सिर्फ मुझे ऑटो चलाना सिखाया बल्कि मुझे अपना कस्टमाइज्ड ऑटो लेने में भी मदद की, जिसमें एक हैंड-ऑपरेटेड ब्रेक है।’
कमा लेती है महीने के 20 हजार
आज अंकिता 8 घंटे ऑटो चलाकर 20 हजार रुपये महीने तक कमा लेती हैं। वह भविष्य में खुद का टैक्सी बिजनेस शुरू करना चाहती हैं।
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