फिर बौखलाया चीन… परमाणु पनडुब्बियों के समझौते से क्यों डरा ड्रैगन, ये कितनी ताकतवर?

दुनियाभर के कई देश चीन के मंसूबों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं. चीन से तनावपूर्ण सम्बंधों के बीच अमेरिका अब ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ मिलकर ड्रैगन रणनीति पर पानी फेरने की तैयारी में है. तीनों देशों ने ऑकस (ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका) समझौता किया है. तीनों ही देश मिलकर नई और दुनिया की सबसे बेहतर तकनीक से पनडुब्बी का विशेष बेड़ा बनाएंगे. ऑकस समझौते के बाद चीन की नींद उड़ी हुई है और इस समझौते का कड़ा विरोध किया है.
ऑकस समझौता है क्या और क्यों हुआ?
ऑकस यानी ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर पनडुब्बी का नया बेडा बनाएंगे. इस समझौते के तहत अमेरिका तीन परमाणु पनडुब्बी ऑस्ट्रेलिया को देगा. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के PM एंथनी अल्बनीज और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कैलिफोर्निया नौसैन्य अड्डे इस समझौते की घोषणाा की.
एंथनी का कहना है कि परमाणु पनडुब्बी की खरीद और स्वदेशी युद्धपोतों को तैयार करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के इतिहास का यह सबसे बड़ा निवेश है. इस समझौते के तहत ब्रिटेन के रॉल्स रॉयस के रिएक्टर को भी शामिल किया जाएगा. इस समझौते के तहत पनडुब्बी में तीनों ही देश की तकनीक का इस्तेमाल होगा.
पिछले कई सालों से चीन समुद्र के जरिए जासूसी करने के साथ कब्जा बढ़ाने की कोशिश में है. भारत के लिए भी चीन यही नीति अपना रहा है. चीन की चाल को रोकने यह समझौता किया गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन का कहना है, तीनों देश भारत-प्रशांत क्षेत्र को मुक्त और स्वतंत्र बनाए रखने के लिए तैयार हैं.
परमाणु हमले का खतरा नहीं, फिर चीन क्यों डर रहा है?
ऑकस समझौते की घोषणा होते ही मंगलवार को चीन ने आपत्ति जताई. चीनी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करके कहा, अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ने के आसार हैं. हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का कहना है कि इस समझौते का लक्ष्य शांति को बढ़ावा देना है. बाइडेन का दावा है कि इन पनडुब्बियों को चलाने के लिए परमाणु ऊर्जा का प्रयोग किया जाएगा और ये परमाणु हथियारों से लैस कतई नहीं होंगी.
वर्तमान में दुनिया के मात्र 6 देशों के पास ही परमाणु पनडुब्बियां हैं. इसमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और भारत शामिल है. अब समझौते के बाद ऑस्ट्रेलिया भी इन देशों में शामिल हो जाएगा. चीन को कई बातों से डर है. जैसे- अब ऑस्ट्रेलिया की ताकत में भी इजाफा होगा. समुद्री सीमा में कब्जा करने और जासूसी करने के मंसूबों पर पानी फिर सकता है.
तीनों ही देशों के भारत के साथ सम्बंध अच्छे हैं, ऐसे में अगर चीन भारत को नुकसान पहुंचाता है और ये देश ड्रैगन की योजना पर पानी फेर सकते हैं. बाइडेन ने साफतौर पर कहा है कि समझौते के जरिए हम आपसी सहयोग को मजबूत कर रहे हैं. यह बता रहे हैं कि लोकतंत्र को कैसे सुरक्षित रखा जा सकता है.
कितनी ताकतवर होगी ऑस्ट्रेलिया को मिलने वाली पनडुब्बी?
आधुनिक तकनीक से लैस परमाणु पनडुब्बी अमेरिका के बाद सिर्फ ब्रिटेन के पास है. जल्द ही ये ऑस्ट्रेलिया को मिलेगी. ये पनडुब्बी कई मायनों में अलग होगी. जैसे- ये परमाणु ऊर्जा से संचालित होंगी. डीजल से चलने वाली पनडुब्बी के मुकाबले यह काफी लम्बी यात्राएं कर सकेंगी.
इससे यह भी साफ है कि ये न्यूक्लियर सबमरीन कई महीनों तक पानी में रह सकती हैं और लंबी दूरी तय करने वाली इन पनडुब्बियों को खुफिया अभियानों का हिस्सा बनाया जा सकता है.इसके जरिए ऑस्ट्रेलिया लम्बी दूरी पर मौजूद दुश्मनों पर वार कर सकेगा. इस तरह ऑस्ट्रेलिया की नौसेना की ताकत में इजाफा होगा.